रावण के दस सिरों के नाम का उल्लेख हिंदू पौराणिक कथाओं में किया जाता है। इन सिरों के नामों का प्रमाण विभिन्न पुराणों, रामायण और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। ये नाम साम्प्रदायिक और धार्मिक अनुयायों के बीच प्रसिद्ध हैं और उनकी मान्यता है। रावण के 10 सिरों की कथा हिंदू पौराणिक काव्य रामायण में मिलती है। इस काव्य में वर्णित है कि रावण वरुण और ब्रह्मा के आशीर्वाद से अपने अत्यधिक तप के कारण शिवजी की प्रार्थना से उन्हें 10 सिर मिले। ये 10 सिर उनकी अद्भुत शक्तियों और विशेषताओं को प्रतिष्ठित करते हैं। यह कथा हिंदू धर्म की प्रमुख कथाओं में से एक है और रामायण में विस्तार से वर्णित की गई है।
रावण के दस सिरों का मतलब महाकाय, महाभीम, महानाग, महासिंह, महाकपि, महाविष्णु, महाशक्ति, महारुद्र, महापशु, और महाशेष है। ये सिर रावण के नवरूपों को प्रकट करते हैं और उनकी अद्भुत शक्तियों को प्रतिष्ठित करते हैं। रावण के दस सिर होने की चर्चा रामचरितमानस में आती है। जिसके अनुसार रावण कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला था तथा युद्ध के दौरान प्रत्येक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते थे। इस तरह दसवें दिन अर्थात् शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ। इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है।
लेकिन कुछ विद्वानों का यह मानना है कि रावण के 10 दस सिर नही थे बल्कि वह 10 अवगुणों काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, ईर्ष्या, लालच, तमो गुण, व्यभिचार और अहंकार से इतना युक्त था कि महामुनि नारद ने उसे यह उपाधि दी थी |
तो वहीं कुछ ग्रंथों के अनुसार रावण छह दर्शन और चार वेदों का ज्ञाता था मतलब 10 मस्तक की बुद्धि रखता था और जब वह युद्ध के लिये मैदान में जाता था तब उसके 10 सिर माया से प्रकट भी होते थे इसलिए उसे दस सिरों के समान बुद्धि वाला माना गया है और दससीस कहा गया है | किन्तु रामचरित मानस मे एक चौपाई उल्लिखित है –
"दस सिर ताहि बीस भुजदंडा।
रावन नाम बीर बरिबंडा ||"
इस चौपाई का अर्थ है –
‘उसके दस सिर और बीस भुजाएँ थीं और वह बड़ा ही प्रचण्ड शूरवीर था’ तभी तो उसने
अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिये ब्रम्हा जी को दस बार अपने शीश काट कर चढ़ाए
थे जिसके कारण उसे अमरता का वरदान तो नहीं मिला लेकिन अन्य वरदान अवश्य मिले |