
किसी जंगल में, एक पेड़ था। उस पेड़ के नीचे एक चींटी रहती थी। और उसी पेड़ के ऊपर एक कबूतर घोसला बना कर रहता था। चींटी, जंगल मे घूम घूम कर अपने भोजन तथा पानी की, व्यवस्था करती रहती थी।
एक समय की बात है, गर्मियों के दिनों में एक चींटी बहुत प्यासी थी और वो अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश कर रही थी।
चींटी- हे भगवान मुझे बहुत जोर की प्यास लगी है अगर मुझे पानी नहीं मिला तो मै प्यास से मर जाऊँगी, प्रभु मुझपे रहम करो।
कुछ देर तलाश करने के बाद वह एक नदी के पास पहुंची, सामने पानी था पानी देखकर वह बहुत खुश हुई --
चींटी- हे भगवान आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरे लिये पानी की व्यवस्था कर दी।
ऐसा सोचकर वह पानी पीने के लिये आगे बढ़ी लेकिन पानी पीने के लिए वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी, इसलिए वह एक छोटे से पत्थर के ऊपर चढ़ गई। लेकिन जैसे ही उसने पानी पीने की कोशिश की, वह फिसल कर नदी में जा गिरी।
चींटी पानी के बहाव में डूबने लगी। चींटी ने बचने की बहुत कोशिश की लेकिन उसका बचना मुश्किल लग रहा था, उसने जोर जोर से आवाज लगाना चालू कर दिया --
चींटी-बचाओ कोई मुझे बचाओ भगवान के लिये मेरी मदद करो बचाओ।
कबूतर ने चींटी की आवाज सुनी--
कबूतर- लगता है किसी को मदद की आवश्यकता है कोई मदद के लिये पुकार रहा हा मुझे देखना चाहिये। ऐसा सोचकर कबूतर उड़कर नदी के पास पहुंचा तो देखा की चींटी नदी मे बही जा रही थी। चींटी ने कबूतर को देखकर कहा--
चींटी- कबूतर भैया मेरी मदद करो।
कबूतर को चींटी पर तरस आ गया उसने कहा--
कबूतर- चींटी बहन आप चिंता ना करो मै आपकी मदद जरूर करूंगा।
ऐसा कहकर कबूतर ने पास के डाली से एक पत्ता तोड़कर चींटी के पास फेंक दिया। चींटी उस पत्ते के पास पहुंची और उस पत्ते में चढ़ गयी थोड़ी देर बाद, पत्ता तैरता हुआ नदी किनारे सूखे आ गया। चींटी ने पत्ते में से छलांग लगाई और नीचे उतर गई, चींटी ने पेड़ की तरफ देखा और कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया।
चींटी- कबूतर भैया आपका धन्यवाद अगर आप ना होते तो आज मै नदी मे डूब जाती।
ऐसा कहकर चींटी अपने घर की तरफ चली जाती है।
कुछ दिनों बाद, एक दिन एक शिकारी उस नदी किनारे पहुंचा और उस कबूतर के घोंसले के नजदीक ही उसने जाल लगा दिया और उसमें दाना डाल दिया और वह थोड़ी ही दूर जाकर छुप गया और उम्मीद करने लगा कि वह कबूतर को पकड़ लेगा। कबूतर ने जैसे ही जमीन में दाना देखा उसने सोचा--
कबूतर- अरे वाह आज तो खाना चलकर मेरे पास ही आ गया आज तो पेट भरकर खाऊँगा।
वह उसे खाने के लिए नीचे आया और शिकारी के जाल में फंस गया। कबूतर जाल से निकलने की बहुत कोशिश कर रहा था लेकिन वह निकल नहीं पा रहा था। शिकारी ने कबूतर का जाल पकड़ा और कबूतर को पकड़कर वहाँ से अपने घर की ओर चलने लगा। कबूतर जोर जोर से चिल्ला रहा था--
कबूतर- बचाओ कोई मुझे इस शिकारी बचाओ।
चींटी ने जब कबूतर की आवाज सुनी तो वह शिकारी के पास पहुंची और उसने खूब जोर से शिकारी के पैर मे काटा। तेज दर्द के कारण शिकारी ने उस जाल को छोड़ दिया और अपने पैर को देखने लगा। कबूतर को जाल से निकलने का यह मौका मिल गया और वह तेजी से जाल से निकल कर उड़ गया। कुछ दिन बाद चींटी और कबूतर मिलते है और दोनों एक दुसरे को धन्यवाद बोलते है, और एक अच्छे दोस्त बन जाते है।
सीख
उपरोक्त कहानी से हमें सीख मिलती है कि जीवन में किए गए अच्छे कर्म कभी बेकार नहीं जाते अच्छे कर्म करते रहो,उनका फल अवश्य लौटकर आता है। कबूतर ने चींटी की मदद की थी और उसी मदद के फलस्वरूप मुश्किल समय में चींटी ने कबूतर की जान बचाई। इसलिए कभी भी किसी की सहायता करने या अच्छा करने से पीछे न हटें। जब भी मौका मिले, दूसरो की बिना किसी स्वार्थ के मदद करें।
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