Bolne wali Gufa | Sher va Lomadi Ki Kahani Panchtantra Ki Kahani | बोलने वाली गुफा पंचतंत्र की कहानी


सुंदरवन में एक शेर रहता था। जंगल के जानवर उससे इतना डरते थे कि, उसकी दहाड़ सुनते ही अपने-अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर छिप जाते थे। कभी-कभी तो उस शेर को इसी कारण से भूखा भी रहना पड़ता था।

एक बार शेर को कई दिनों तक कोई शिकार हाथ न लगा। वह शिकार की खोज में इधर-उधर मारा-मारा फिरता रहा। बहुत परिश्रम के बाद भी उसे शिकार के लिए कोई जानवर नही दिखाई दिया। उसे ऐसा लगने लगा कि वह भूख से मर जाएगा।

शेर- "लगता है आज मुझे कोई शिकार नहीं मिलेगा यदि मुझे शिकार नहीं मिला तो मुझे भूखा रहना पड़ेगा चलो आगे देखता हूँ "

शेर शिकार की खोज मे अपनी गुफा से बहुत दूर निकल आया अचानक उसने देखा कि सामने एक बड़ी-सी गुफा है जिसका द्वार खुला हुआ है। गुफा देखकर शेर के मन में विचार आया

शेर - "जरूर इस गुफा मैं कोई न कोई जानवर रहता होगा। इसके भीतर चल कर देखना चाहिए, हो सकता है कि कोई शिकार अंदर बैठा हो और मेरे भोजन की व्यवस्था हो जाये।"

यह सोचकर शेर गुफा के अंदर चला गया लेकिन इस समय गुफा में कोई न था। शेर ने सोचा, 

शेर - "अभी इस गुफा मे तो कोई नहीं है मुझे इसके भीतर चुपचाप लेटे रहना चाहिए। अँधेरा होने पर गुफा
में रहने वाला जानवर अवश्य ही आएगा, तब मैं उसका शिकार करके अपनी भूख मिटा लूँगा ।”

कुछ समय बाद अँधेरा होने लगा । रात में सारा जंगल चाँदनी में नहाया हुआ था। चंद्रमा के प्रकाश में सब कुछ साफ-साफ दिखाई दे रहा था। जिस गुफा में शेर घुसा था, वह एक लोमड़ी की थी। लोमड़ी अन्य जानवरों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान थी। रात होने पर लोमड़ी अपनी गुफा की ओर लौट रही थी, वह शीतल चांदनी का आनंद लेते हुए धीरे-धीरे चल रही थी। अचानक उसकी दृष्टि धरती पर बने पद चिन्हों पर पड़ी - 

लोमड़ी - "ये निशान तो शेर के पैरों के हैं लगता है वो यहीं कहीं है मुझे सावधानी से आगे बढ़ना है।" 

वह आगे की ओर बढ़ी तो उसने देखा कि शेर के पैरों के निशान उसकी गुफा के भीतर गए हैं।

लोमड़ी - "लगता है मेरी गुफा में शेर बैठा है क्योंकि गुफा में शेर के पंजों के जाने के निशान तो बने हैं लेकिन आने के नहीं यदि मै अंदर गयी तो वो मुझ पर हमला कर देगा"

लोमड़ी ने ठंडे दिमाग से सोचा और ऊँची आवाज में बोली - 

लोमड़ी - “कहिए गुफा जी! सब ठीक-ठाक तौ है न ? क्‍या मैं रात॑ बिताने के लिए आपके भीतर आ सकती हैँ ?”

शेर गुफा के अंदर ही था लेकिन वह चुप रहा। वह लोमड़ी के भीतर आने की प्रतीक्षा कर रहा था। लोमड़ी ने एक बार पुनः प्रश्न को दोहराया - 

लोमड़ी - “गुफा ओ मेरी प्यारी गुफा! आज आप चुप क्यों हो? मुझे बताती क्यों नहीं कि मैं भीतर आऊँ या न आऊँ ? पहले तो कभी भी आप इस तरह शांत न रहती थीं, एक बार के पूछने में ही आप उत्तर दे देती थीं । आज
आपको क्या हो गया है ? जब तक आप मुझे अंदर आने के लिए न कहोगी तब तक मैं भीतर नहीं आऊँगी ।”

लोमड़ी की बातों को सुन कर शेर असमंजस में पड़ गया। वह यह नहीं सोच पा रहा था अब क्या करे ? वह चुपचाप अंदर ही बैठा रहा। लोमड़ी ने दोबारा गुफा से दूसरे तरीके में पूछा -

लोमड़ी - “मेरी प्यारी गुफा! आपके चुप रहने का रहस्य मैं जान रही हूँ। आज भीतर अवश्य ही कोई खूँखार जानवर बैठा है, जिसके कारण आप मुझसे बात नहीं कर रही हो। अच्छा तो मैं चलती हूँ।”

शेर को लगा कि शिकार हाथ से निकल रहा है। उसने सोचा कि जरूर यह गुफा लोमड़ी से बात करती होगी, मेरे डर के मारे गुफा आज लोमड़ी से बात नहीं कर रही है । चलो गुफा की तरफ से मैं ही बोलता हूँ। यह सोचकर शेर आवाज बदलकर बोला - 

शेर - “अरे, जरा रुको प्यारी लोमड़ी! मैं गहरी नींद में सो रही थी, इसलिए आपसे बात न कर सकी, अंदर सब ठीक है। आप बिना भय और संदेह के अंदर चली आओ ।"

लोमड़ी की चाल सफल हुई, वह पहचान गई कि गुफा के अंदर से आने वाली आवाज शेर की ही है। उसे पूरा विश्वास हो गया कि शेर अभी तक गुफा के भीतर ही बैठा है। उसने शेर से कहा - 

लोमड़ी - “जैसे एक शेर कभी घास नहीं खाता, उसी तरह गुफा कभी बोल नहीं सकती हुजूर!, आप आराम से रात भर मेरी गुफा में रहें। शुभ रात्रि"

यह कहकर लोमड़ी अपने प्राण बचाने के लिये वहाँ से बहुत तेज भागी और वहाँ से खूब दूर निकल गयी।

कहानी से शिक्षा 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बिपत्ति के समय हमें बुद्धिमानी से काम लेना चाहिये हम बुद्धि से ही हर मुसीबत से छुटकारा पा सकते हैं ।



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